Wednesday, May 2, 2018

कायस्थ क्षत्रिय हैं

कायस्थ जाति
का वर्ण क्षत्रिय है।

आईए जानते
है एक न भूलने वाला लेख
के द्वारा ........
.
ऋषियों की स्मृति जैसे कि मनु, याज्ञवल्क्य, व्यास, वशिष्ठ आदि ने
मनुष्यों को चार वर्णों ब्राह्राण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र में विभाजित
किया है,
.
मनु ने अघ्याय दस श्लोक चार में कहा है कि इनके अतिरिक्त
पाचवां वर्ण नहीं है।
.
अत: कायस्थों को इन चारों वर्णों में से से
किसी एक में स्थान देना है।

महाभारत दृढ़ता पूर्वक घोषित करती है कि आरम्भ
में इन श्रेणियों में कोई भेद भाव
नहीं था।

परन्तु बाद में आचार विचार
तथा व्यवसाय के आधार पर भेदभाव
उत्पन्न हो गया।

पदम पुराण के उत्तराखण्ड में वर्णित है
कि चित्रगुप्त की दो पतिनयों से
प्राप्त 12 पुत्र यज्ञोपवीत धारण
करते थे तथा उनके विवाह नाग कन्याओं
से हुए थे। वे कायस्थों की बारह
उपजातियों के पूर्वज थे।

यह कथा कहती है कि कायस्थ चित्रगुप्त
वंशी क्षत्रीय हैं ।

वे समस्त संस्कारों के
अधिकारी हैं। यही कथा थोड़े बहुत
अन्तर के साथ अधिकतर पुराणों में
दी गयी है।

पदमपुराण में उपरोक्त
कथा के पश्चात लिखा गया है कि :
‘चित्रगुप्त’ को धर्मराज के निकट
जीवों के अच्छे व बुरे
कर्मों का लेखा जोखा लिखने के लिए
रखा गया।

उनमें आलोकिक
बुद्विमता थी और वो अगिन
तथा देवताओं को चढ़ाई जाने
वाली बलि के भाग प्राप्त करने के
अधिकारी थे।

इसी कारण से द्विज
श्रेणी के लोग उन्हें अपने भोजन में से
भोग लगाते हैं।

पदम पुराण के सृष्टि खण्ड में
भी कहा गया है कि कायस्थों के
धार्मिक संस्कार तथा अध्ययन
ब्राह्राणों के समान
तथा उनका व्यवसाय क्षत्रियों के
समान होनी चाहिए।

भविष्य पुराण मे
कहा गया है कि सृष्टिकर्ता ईश्वर ने
चित्रगुप्त को नाम तथा कर्तव्य
निम्नलिखित अनुसार निशिचत किये।

‘चूकि तुम मेरी काया से प्रकट हुए हो इसलिए ऐ मेरे पुत्र, तुम्हारा निवास सदा न्याय के देवता के
यहां रहेगा ताकि तुम मनुष्यों के अच्छे
तथा बुरे कर्मों का निर्णय
करो तथा मेरे अटल आदेशों को प्राप्त
करते हुए, तुम्हें शास्त्रों के अनुसार
क्षत्रियों के रीति रिवाज तथा धर्म
विधान का पालन करना चाहिए।’

गरुड़ पुराण में कहा गया है
कि चित्रगुप्त का राज्य सिंहासन
यमपुरी में है और वो अपने न्यायालय में
मनुष्यों के कर्मों के अनुसार उनका न्याय
करते हैं तथा उनके
कर्मों का लेखा जोखा रखते हैं,

‘शब्द कल्पद्रुम’ में यम
संहिता की ंव्याख्या में कहा गया है,
‘कि कायस्थ
जो ब्रह्राजी की काया से प्रकट हुए
हैं उनकी ब्राह्राण के समान पदवी है

परन्तु कलि-युग में उनके धार्मिक रीति रिवाज तथा कर्तव्य
क्षत्रियों के समान होंगे।’

जिसके अनुसार आज
भी कहीं कहीं कायस्थों में शस्त्र पूजन
का प्रचलन है।
कायस्थों की 12
उपजातियां इन्हीं 12 पुत्रों से चलीं।

भानु, जो कि श्रीवास्तवों के पूर्वज थे, कश्मीर में जाकर बसे, वह वहा श्रीनगर
के राजा बने तथा चन्द्रगुप्त (मगध के
राजा) से राजाधिराज
की उपाधि प्राप्त की।

विभानु जो कि सूर्यध्वजों के पूर्वज थे, ने
इक्ष्वाकु वंश के राजा सूर्यसेन से
उपाधि पायी क्योंकि उन्होंने एक
बलिदान में उनकी सहायता की थी।

विश्वभानु जो कि अस्थाना कायस्थों के
पूर्वज थे, को बनारस के राजा ने सम्मानित किया और उन्हें अष्ट (आठ)
प्रकार के बहुमूल्य मोती भेंट किये जिसके
कारण वह अस्थाना कहलाये।

बृजभान, जो कि बाल्मीकि के पूर्वज थे, ने
बाल्मीकि नाम अपने आत्मसंयम
तथा धार्मिक चिन्तन के कारण पाया।

चारु के वंशज मथुरा में बसने के कारण
माथुर कहलाये।

सुचारु के वंशज बंगाल
की पुरानी राजधानी गौर या गौड़ के
नाम पर गौड़ कहलाये। इस उपजाति ने
सैन राजवंश की नींव डाली और
कहा जाता है कि उनके पूर्वज भागदत्त
महाभारत के युद्व में युधिष्ठर के विरुद्व
दुर्योधन की ओर से लड़े थे।

उनमें से राजा लालसैन एक अन्य प्रसिद्व
राजा हुए थे। इस राज वंश के अनितम
राजा लक्ष्मण थे।

भटनागर उपजाति ने यह नाम भट नदी के किनारे पर अथवा पुराने
कस्बे भटनेर में निवास करने के कारण
पाया।

सक्सेना उपजाति साहितियक
थी तथा युद्व में उनके बुद्वि कौशल के
कारण श्री नगर के श्रीवास्तव राजा ने
उन्हें ‘सेना के मित्र’ की उपाधि प्रदान
की थी।
उनके पूर्वजों में से एक सूरज चन्द्र अथवा सोमदत्त
को श्री रामचन्द्र जी के पुत्र कुश ने उनके कोषाध्यक्ष के रुप में र्इमानदार
होने के कारण उन्हें ‘खरवा’
की उपाधि दी थी।

अत: ‘खरवा’
सक्सेना उपजाति का सम्प्रदाय बन
गया।

अम्बष्ठ देवी अम्बा जी की आराधन करने के
कारण कहलाये, जो कि हिमवान के वंशज
थे। अम्बष्ठ उपजाति बिहार के
पटना तथा गया जनपदों में पाई जाती है।

अरुण के वंशज कर्ण जैसा कि मि. क्रुक
का कथन है, पूर्ण रुप से
आर्यों की उपजाति है। इनका नाम
नर्मदा के करनाली के ऊपर पड़ा। यह
उड़ीसा में लेखक वर्ग के रुप में विख्यात
हैं।

कायस्थों की विभिन्न
उपजातियों के बारे में मि0 क्रुक का कथन है कि कायस्थों ने इतिहास में
महत्व पूर्ण भूमिका निभार्इ। उन्होंने
राजवंशों की स्थापना की तथा राजा
एवं राजाधिराज बने।

वह रणभूमि में लड़े
तथा लड़ार्इ में अपने बुद्वि कौशल का प्रदर्शन किया, जिसके कारण
राजाओं तथा जनता से सम्मान पाया,
तथा समाज में उच्च स्थान प्राप्त
किया।

उनके रीति रिवाज, धार्मिक
अनुष्ठान तथा विवाह आदि उच्च जाति नियमों के अनुसार होते हैं।

एक ही अल्ल में विवाह नहीं होते हैं
तथा इसके लिए पिता तथा माता के
वंशों का ध्यान रखा जाता है।

एक से अधिक पति तथा पत्नी रखने पर
कड़ा प्रतिबन्ध है।

वे चित्रगुप्त
की पूजा करते हैं, विशेष रुप से कार्तिक
मास की यमद्वितीया को, जिस दिन
कि समस्त हिन्दु, चित्रगुप्त के 14
यमों में से एक यम होने के कारण
उनकी पूजा करते हैं।

उपरोक्त विवेचना के अनुसार पटना हाईकोर्ट
नेनिर्णय दिया है
कि कायस्थ जाति का वर्ण क्षत्रिय है।